हम अपने दिल को समझाते रहते हैं
सावन-भादो आते जाते रहते हैं
प्यार के पंछी कब रुकते हैं उड़ने से
दुनिया वाले शौर मचाते रहते हैं
महफिल-महफिल हंसते हैं मुस्काते हैं
तन्हाई में अश्क़ बहाते रहते हैं
चाँद, हवा, फूल, किताबें, जुगनू, तितली
मिल कर मेरा जी बहलाते रहते हैं
बादल, चिड़िया, तोता, दरिया और 'परवाज़'
अपना-अपना दर्द सुनते रहते हैं
सोमवार, 20 जुलाई 2009
रविवार, 5 जुलाई 2009
आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं
आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं
छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं
गुमसुम तन्हा क्यों बेठे हो सब पूछें
इतना भी संज़ीदा होना ठीक नहीं
कुछ और सोच ज़रीया उस को पाने का
जंतर-मंत्र जादू-टोना ठीक नहीं
अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर है
सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं
मुस्तकबिल के ख्वाबों की भी फ़िक्र करो
यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं
दिल का मोल तो बस दिल ही हो सकता है
हीरे-मोती चांदी-सोना ठीक नहीं
कब तक दिल पर बोझ उठायोगे 'परवाज़'
माज़ी के ज़ख्मों को ढोना ठीक नहीं
छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं
गुमसुम तन्हा क्यों बेठे हो सब पूछें
इतना भी संज़ीदा होना ठीक नहीं
कुछ और सोच ज़रीया उस को पाने का
जंतर-मंत्र जादू-टोना ठीक नहीं
अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर है
सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं
मुस्तकबिल के ख्वाबों की भी फ़िक्र करो
यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं
दिल का मोल तो बस दिल ही हो सकता है
हीरे-मोती चांदी-सोना ठीक नहीं
कब तक दिल पर बोझ उठायोगे 'परवाज़'
माज़ी के ज़ख्मों को ढोना ठीक नहीं
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शुक्रवार, 22 मई 2009
गुमसम तनहा बेठा होगा
गुमसमतनहा बेठा होगा
सिगरट के कश भरता होगा
उसने खिड़की खोली होगी
और गली में देखा होगा
ज़ोर से मेरा दिल धड़का है
उस ने मुझ को सोचा होगा
सच बतलाना के़सा है वो
तुम ने उस को देखा होगा
मैं तो हँसना भूल गया हूँ
वो भी शायद रोता होगा
अपने घर की छत पे बेठा
शायद तारे गिनता होगा
ठंडी रात में आग जला कर
मेरा रास्ता तकता होगा
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सोमवार, 30 मार्च 2009
ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा
ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा
नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंज़ाम से वाकिफ़
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा
समन्दर के सफ़र में किस्मतें पहलु बदलती हैं
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा
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शनिवार, 14 मार्च 2009
ग़ज़ल
शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुबने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के खून में गैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है
तशनगी - प्यास
हवा की आँख में चुबने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के खून में गैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है
तशनगी - प्यास
रविवार, 1 मार्च 2009
// ग़ज़ल // सहमा सहमा हर इक चेहरा...
सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र खून में तर
शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर
तुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता है
तुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद पर
बेमोसम ही छा जाते हैं बादल तेरी यादों के
बेमोसम ही हो जाती है बारिश दिल की धरती पर
आ भी जा अब जाने वाले कुछ इन को भी चैन पड़े
कब से तेरा रस्ता देखें छत आँगन दीवार-ओ-दर
जिस की बातें अम्मा अब्बू अक्सर करते रहते हैं
सरहद पार नजाने कैसा वो होगा पुरखों का घर
जतिन्दर परवाज़
( देहली में 9868985658)
शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर
तुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता है
तुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद पर
बेमोसम ही छा जाते हैं बादल तेरी यादों के
बेमोसम ही हो जाती है बारिश दिल की धरती पर
आ भी जा अब जाने वाले कुछ इन को भी चैन पड़े
कब से तेरा रस्ता देखें छत आँगन दीवार-ओ-दर
जिस की बातें अम्मा अब्बू अक्सर करते रहते हैं
सरहद पार नजाने कैसा वो होगा पुरखों का घर
जतिन्दर परवाज़
( देहली में 9868985658)
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
// ग़ज़ल //
ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
मुश्किलें हैं सफ़र में क्या क्या कुछ
फूल से जिस्म चाँद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ
तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी
हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ
ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ
शाम तक तो नगर सलामत था
हो गया रात भर में क्या क्या कुछ
हम से पूछो न जिंदगी 'परवाज़'
थी हमारी नज़र में क्या क्या कुछ
जतिन्दर परवाज़
ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
मुश्किलें हैं सफ़र में क्या क्या कुछ
फूल से जिस्म चाँद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ
तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी
हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ
ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ
शाम तक तो नगर सलामत था
हो गया रात भर में क्या क्या कुछ
हम से पूछो न जिंदगी 'परवाज़'
थी हमारी नज़र में क्या क्या कुछ
जतिन्दर परवाज़
गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009
मेरा विडियो देखें
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बुधवार, 25 फ़रवरी 2009
ग़ज़ल समा'त फ़रमाएँ
मुझ को खंज़र थमा दिया जाए
फिर मिरा इम्तिहाँ लिया जाए
ख़त को नज़रों से चूम लूँ पहले
फिर हवा में उड़ा दिया जाए
तोड़ना हो अगर सितारों को
आसमाँ को झुका लिया जाए
जिस पे नफरत के फूल उगते हों
उस शजर को गिरा दिया जाए
एक छप्पर अभी सलामत है
बारिशों को बता दिया जाए
सोचता हूँ के अब चरागों को
कोई सूरज दिखा दिया जाए
फिर मिरा इम्तिहाँ लिया जाए
ख़त को नज़रों से चूम लूँ पहले
फिर हवा में उड़ा दिया जाए
तोड़ना हो अगर सितारों को
आसमाँ को झुका लिया जाए
जिस पे नफरत के फूल उगते हों
उस शजर को गिरा दिया जाए
एक छप्पर अभी सलामत है
बारिशों को बता दिया जाए
सोचता हूँ के अब चरागों को
कोई सूरज दिखा दिया जाए
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
ग़ज़ल पे'शे खिदमत है...
यूँ ही उदास है दिल बेक़रार थोड़ी है
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है
नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है
मुझे भी नींद न आए उसे भी चैन न हो
हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है
खिज़ा ही ढूंडती रहती है दर-ब-दर मुझको
मेरी तलाश मैं पागल बहार थोड़ी है
न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है
जतिंदर परवाज़
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है
नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है
मुझे भी नींद न आए उसे भी चैन न हो
हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है
खिज़ा ही ढूंडती रहती है दर-ब-दर मुझको
मेरी तलाश मैं पागल बहार थोड़ी है
न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है
जतिंदर परवाज़
तास्वीरें बोलती हैं
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रविवार, 22 फ़रवरी 2009
मेरी एक ग़ज़ल
बारिशों में नहाना भूल गए
तुम भी क्या वो ज़माना भूल गए
कम्प्पुटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए
यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़ज़ाना भूल गए
मैं तो बचपन से ही हूँ संजीदा
तुम भी अब मुस्कराना भूल गये
जतिन्दर परवाज़
तुम भी क्या वो ज़माना भूल गए
कम्प्पुटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए
यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़ज़ाना भूल गए
मैं तो बचपन से ही हूँ संजीदा
तुम भी अब मुस्कराना भूल गये
जतिन्दर परवाज़
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
ग़ज़ल
// मेरी एक ग़ज़ल //
वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
मुहब्बत का पहला असर काटता है
मुझे घर मैं भी चैन पड़ता नही था
सफ़र में हूँ अब तो सफ़र काटता है
ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है
तुम्हारी जफा पर मैं गज़लें कहूँगा
सुना है हुनर को हुनर काटता है
ये फिरका-परसती ये नफ़रत की आंधी
पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है
जतिन्दर परवाज़
गाँव - शाहपुर कंडी,
तहसील - पठानकोट , पंजाब
mob delhi- 9868985658
वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
मुहब्बत का पहला असर काटता है
मुझे घर मैं भी चैन पड़ता नही था
सफ़र में हूँ अब तो सफ़र काटता है
ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है
तुम्हारी जफा पर मैं गज़लें कहूँगा
सुना है हुनर को हुनर काटता है
ये फिरका-परसती ये नफ़रत की आंधी
पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है
जतिन्दर परवाज़
गाँव - शाहपुर कंडी,
तहसील - पठानकोट , पंजाब
mob delhi- 9868985658
सोमवार, 16 फ़रवरी 2009
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
एक ग़ज़ल
यार पुराने छूट गए तो छूट गए
कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए
सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए
शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए
इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
भाग किसी के फूट गए तू फूट गए
छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए
अब के बिछड़े तो मर जाएंगे 'परवाज़'
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए
जतिन्दर परवाज़
हेलो - 9868985658
कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए
सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए
शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए
इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
भाग किसी के फूट गए तू फूट गए
छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए
अब के बिछड़े तो मर जाएंगे 'परवाज़'
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए
जतिन्दर परवाज़
हेलो - 9868985658
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