बारिशों में नहाना भूल गए
तुम भी क्या वो ज़माना भूल गए
कम्प्पुटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए
यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़ज़ाना भूल गए
मैं तो बचपन से ही हूँ संजीदा
तुम भी अब मुस्कराना भूल गये
जतिन्दर परवाज़
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
जवाब देंहटाएंअब तो पंछी भी आना भूल गए
अच्छी ग़ज़ल कही.
lajawaab gazal
जवाब देंहटाएंkhoobsurti men kamaal gazal. shubh kaa,nayen.
जवाब देंहटाएंफल तो आते नहीं थे पेडों पर
जवाब देंहटाएंअब तो पंछी भी आना भूल गए
-बहुत उम्दा गज़ल.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...हर शेर लाजवाब है...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
जवाब देंहटाएंअब तो पंछी भी आना भूल गए
यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़ज़ाना भूल गए
आपने तो दीवाना बना दिया अपनी ग़ज़लों का
कितने खूबसूरत शेर है सब के सब
मज़ा आयेगा आपको पढ़ कर आगे भी.
मेरे ब्लॉग पर भी कुछ गज़लें पढें, अच्छी लगें तो बताएं
achha hai...
जवाब देंहटाएंshabdon ka khoobsoorti se istemaal..
very nice ghazal ..
जवाब देंहटाएं-tarun