शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुबने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के खून में गैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है
तशनगी - प्यास
खुबसूरत ग़ज़ल है...!
जवाब देंहटाएंनदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
जवाब देंहटाएंसमन्दर बारिशों में भीगता है
वाह...जवाब नहीं इस शेर का...कमाल कर दिया है आपने...बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है...बधाई...
नीरज
sunder rachna ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंकभी जुगनू कभी तितली के पीछे
जवाब देंहटाएंमेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के खून में गैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
बहुत umda gazal, हर sher lajawaab. ये दोनों तो ख़ास कर.........
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
जवाब देंहटाएंमेरी आँखों में आँखे डालता है
खूबसूरत अदायगी -बधाई
आज किसी ब्लॉग से पता मिला भाई
श्याम सखा मेरे ब्लॉग्स
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [ हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम