यार पुराने छूट गए तो छूट गए
कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए
सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए
शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए
इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
भाग किसी के फूट गए तू फूट गए
छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए
अब के बिछड़े तो मर जाएंगे 'परवाज़'
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए
जतिन्दर परवाज़
हेलो - 9868985658
सुंदर ग़ज़ल है...ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है,, आगे भी ऐसे ही लिखते रहिये...
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल है
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
"सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं/तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए"
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूब जतिन्दर जी