गुरुवार, 29 जनवरी 2009

एक ग़ज़ल

यार पुराने छूट गए तो छूट गए
कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए

सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए

शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए

इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
भाग किसी के फूट गए तू फूट गए

छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए

अब के बिछड़े तो मर जाएंगे 'परवाज़'
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए

जतिन्दर परवाज़
हेलो - 9868985658

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर ग़ज़ल है...ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है,, आगे भी ऐसे ही लिखते रहिये...

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  2. "सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं/तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए"

    वाह क्या खूब जतिन्दर जी

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jatinderparwaaz@gmail.com