सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

ग़ज़ल पे'शे खिदमत है...

यूँ ही उदास है दिल बेक़रार थोड़ी है
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है

नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है

मुझे भी नींद न आए उसे भी चैन न हो
हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है

खिज़ा ही ढूंडती रहती है दर-ब-दर मुझको
मेरी तलाश मैं पागल बहार थोड़ी है

न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है

जतिंदर परवाज़

5 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे भी नींद न आए उसे भी चैन न हो
    हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है

    सुभान अल्लाह...वाह...क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...सारे के सारे शेर लाजवाब हैं...बधाई.

    नीरज

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  2. गजल मनभावन है
    शब्‍दों का अंबार थोड़ी है

    प्‍यार जरूर है
    पर बुखार थोड़ी है

    कम शब्‍द हैं पर
    खूब बनी जोड़ी है

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    चाहे मॉडरेशन लगाएं।

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  3. खिज़ा ही ढूंडती रहती है दर-ब-दर मुझको
    मेरी तलाश मैं पागल बहार थोड़ी है

    वह जनाब..........
    खूबसूरत ग़ज़ल, एक एक शेर मोती जैसे खिला हुवा

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jatinderparwaaz@gmail.com