शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

ग़ज़ल

// मेरी एक ग़ज़ल //


वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
मुहब्बत का पहला असर काटता है

मुझे घर मैं भी चैन पड़ता नही था
सफ़र में हूँ अब तो सफ़र काटता है

ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है

तुम्हारी जफा पर मैं गज़लें कहूँगा
सुना है हुनर को हुनर काटता है

ये फिरका-परसती ये नफ़रत की आंधी
पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है

जतिन्दर परवाज़
गाँव - शाहपुर कंडी,
तहसील - पठानकोट , पंजाब
mob delhi- 9868985658

4 टिप्‍पणियां:

  1. जतिन्द्र जी बहुत अच्छी गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

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  2. aapke blog pe pahali dafa aana hua hai bahot hi khub likha hai aapne aapki kuchh gazalen padhi hai uar padhani hai baaki hai .... badhiya likha hai aapne .... main bhi apne blog pe aapko sadar aamantrit karta hun .. ummid hai mulakaat jarur hogi...



    arsh

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  3. ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
    ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है

    ग़ज़ब शेर है. शुभकामनाएं.

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  4. तुम्हारी जफा पर मैं गज़लें कहूँगा
    सुना है हुनर को हुनर काटता है
    Wah! Wah! kya baat hai!

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jatinderparwaaz@gmail.com